जलवायु परिवर्तन - IPCC की छँटवी रिपोर्ट

IPCC 一 यानी कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अंतर-सरकारी पैनल 一 की तरफ़ से एक नयी रिपोर्ट आयी है। IPCC का पूरा नाम Intergovernmental Panel for Climate Change है। यह पैनल जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित दुनिया भर में हुए शोधकार्य का संकलन करता है। IPCC की हर रिपोर्ट को इस तरीक़े से लिखा जाता है कि तकनीकी बातों एवं नयी खोजों को सरल और संक्षिप्त रूप में नीति-निर्माताओं तक पहुँचाया जा सके। IPCC की पहली रिपोर्ट १९९० में लिखी गयी थी। २०२१ की रिपोर्ट IPCC की छँटवी रिपोर्ट का हिस्सा है और यह इस लिंक पर उपलब्ध है।

यह लेख इस रिपोर्ट के एक अंश पर केंद्रित है।

 

Source: Headline Statements, WG1, AR6 (2021)
इस लेखाचित्र की व्याख्या पृष्ठ के अंत में की गयी है।

 

अंश A.1 के अनुसार: "यह स्पष्ट है कि मानव प्रभाव ने वायुमंडल, महासागर और भूमि को गर्म कर दिया है। वायुमंडल, महासागर, क्रायोस्फीयर और बायोस्फीयर में व्यापक और तीव्र परिवर्तन हुए हैं।"

इस कथन के कई पहलू हैं और हर एक का अपना-अपना महत्त्व है। पहला पहलू यह है की अब जलवायु के परिवर्तित होने के संकेत काफ़ी साफ़ हैं और इस बात में कोई संदेह नहीं बचा है कि ये भू-मंडलीय संकट हो रहा है या नहीं। इसे दूसरी तरह से सोचें तो ये भी स्पष्ट है कि यह कोई भविष्य का संकट नहीं है, बल्कि इसके प्रभाव अब ही शुरू हो चुके हैं। अतः इस समस्या का हल हमें ना सिर्फ़ आने वाली पीढ़ियों के लिए, बल्कि अपने स्वयं की भलाई के लिए भी करना होगा। 

दूसरा पहलू यह है कि यह संकट मानवीय प्रभाव से पैदा हुआ है। अतः इसका हल भी हमारे सामर्थ्य में है। मेरे हिसाब से यह एक उत्साहजनक पहलू है।

तीसरा पहलू यह है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हमें वायुमंडल ही नहीं, बल्कि महासागर, क्रायोस्फीयर एवं बायोस्फीयर में भी देखने मिलते हैं। इस संकट का मूल कारण है कि धरती के वायुमंडल में कुछ गैसों की मात्रा बहुत ज़्यादा बढ़ गयी है। परंतु हमारा वायुमंडल धरती के दूसरे हिस्सों से जुड़ा हुआ है। अतः जो ऊष्मा वायुमंडल में एकत्रित हो रही है, वो महासागरों को भी गर्म कर रही है। उस गर्मी से दुनिया भर में बर्फ़ पिघल रही है, और जैविक संसार भी प्रभावित हो रहा है।

चौथा पहलू यह है कि अब ये परिवर्तन व्यापक हैं। दुनिया भर में इस परिवर्तन के अलग-अलग प्रभाव मानव समुदायों पर अलग-अलग प्रहार कर रहे हैं। कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं बवंडर, कहीं दावाग्नि (forest-fire) अब शायद ही कोई इलाक़ा बचा है जो इस परिवर्तन की चपेट से बचा हो। इस संकट के सामने दुनिया के सभी देश, समुदाय, धर्म, जाति या प्रजाति के लोग एक जैसे ही विपत्ति-ग्रस्त हैं (पर इस बारे में किसी दूसरे लेख में चर्चा करेंगे; यह एक जटिल विषय है)।

आख़िरकार, पाँचवा पहलू ये है कि अब ये परिवर्तन तीव्र हो चुका है। १९९० में IPCC की पहली रिपोर्ट में ऐसा संकेत नहीं था। ३१ साल पहले उस रिपोर्ट में सिर्फ़ यह बात निश्चित रूप से बतायी गयी थी कि कुछ मानवी गतिविधियों के कारण धरती के वायुमंडल में ऊष्मा-संचयी गैसों की मात्रा बढ़ रही है, और इससे आने वाले समय में संकट आएँगे। १९९५ में IPCC की दूसरी रिपोर्ट ने फिर यही बात दोहरायी 一 कि समस्याजनक गैसों का उत्पादन अभी भी चालू है, इससे जलवायु परिवर्तित होगी और इस परिवर्तन के कुछ संकेत उभरने लगे हैं। स्पष्ट आँकड़ों के अभाव में ये चेतावनी एक संकुचित स्वर में दी गयी थी।

 

Source: SPM, WG1, AR3 (2001)
इस लेखाचित्र की व्याख्या पृष्ठ के अंत में की गयी है।


१९९५ तक जलवायु वैज्ञानिकों के मन में को कोई संदेह नहीं बचा था। १९९५ की तीसरी रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट रूप में व्यक्त की गयी : वैश्विक ऊष्मीकरण शुरू हो चुका है, हमारी गतिविधियों का प्रभाव अब भांपा जा सकता है। पिछले १४० साल के तापमान देखे जायें तो ये काफ़ी साफ़ हो जाता है। लगभग १९८० से भू-मंडलीय तापमान की चढ़ाई निस्संदेह रूप से शुरू हो गयी थी। यही नहीं, जलवायु विज्ञान की एक नयी शाखा पूर्वजलवायु विज्ञान (paleoclimate science) इतनी परिपक्व हो चुकी थी कि एक चिंताजनक खोज सामने आयी : ऐसे ऊँचे तापमान पिछले एक हज़ार वर्षों में नहीं देखे गए थे।


Source: SPM, WG1, AR3 (2001)
इस लेखाचित्र की व्याख्या लेख के अंत में की गयी है।

 

२००१ की स्पष्ट चेतावनी को IPCC की आने वाली सभी रिपोर्ट में दोहराया गया। परंतु पिछले २० सालों में ये सारी चेतावनियाँ या तो नज़र-अन्दाज़ कर दी गयी या फिर उन्हें एक औपचारिकता के रूप में स्वीकार कर के उन पर कोई ठोस कदम नहीं लिए गए। अब २०२१ की नयी रिपोर्ट भी यही चेतावनी फिर से दे रही है 一 २०११-२०२० के दशक के आँकड़े देखें तो औसत तापमान १.०९ डिग्री सेल्सीयस (1.09 ℃) बढ़ चुका है। तुलना के लिए १८५०-१९९० की अवधि को आधार माना जाता है। अब हम ये भी जानते हैं कि आज देखे जाने वाले तापमान पिछले दो हज़ार साल में कभी नहीं देखे गए।

 

Source: SPM, WG1, AR6 (2021)
इस लेखाचित्र की व्याख्या पृष्ठ के अंत में की गयी है।

 

अंततः 

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से हम सभी सामना कर रहे हैं। सवाल ये उठता है कि यह समस्या हमें कब इतना परेशान करेगी कि हम इसके समाधानों को प्राथमिकता दें। पाठक ये संदेह ना रखें कि समाधान नहीं हैं। असली मसला ये है कि उन समाधानों को कार्यान्वित करने के संकल्प का भारी अभाव है।

 

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लेखाचित्र विवरण:

(१) प्रथम चित्र IPCC के पहले कार्यकारी समूह (Working Group 1) की नवीनतम रिपोर्ट से है। ये रिपोर्ट २०२१ में प्रकाशित हुई और इसे AR6 (Assessment Report 6, यानि कि मूल्यांकन रिपोर्ट ६) कहा जाता है। इस लम्बी-चौड़ी तकनीकी रिपोर्ट के साथ एक संक्षिप्त सारांश Headline Statements के रूप में उपलब्ध है।

(२)  दूसरे लेखाचित्र में पिछले १४० सालों के वार्षिक औसत तापमान का परिवर्तन दिखाया गया है। इस लेखाचित्र के लिए १९६१-१९९० के काल को आधार माना गया था। अतः हर वर्ष के आँकड़े इस अवधि की तुलना में कितने गर्म या ठंडे थे, ये दर्शाया गया है। यह लेखाचित्र २००१ की रिपोर्ट से लिया गया है। दर्शाए हुए आँकड़े तापमान-यंत्रों से उपलब्ध हुए हैं।

(३) तीसरे लेखाचित्र में पिछले एक हज़ार साल के तापमान के उतार-चढ़ाव दिखाए गए हैं। आधार के लिए १९६१-१९९० की अवधि ली गयी है। लाल रंग में दिखाए गए आँकड़े तापमान-यंत्रों से उपलब्ध हुए हैं। नीले रंग में दिखाए गए आँकड़े पूर्वजलवायु विज्ञान की तकनीकों से उपलब्ध हुए हैं।

(४) चौथे लेखाचित्र में पिछले २००० सालों के तापमान के उतार-चढ़ाव दिखाए गए हैं। यह लेखाचित्र (३) का ही नवीनतम रूप है। ध्यान दें कि आधुनिक विश्लेषण में आधार के लिए १८५०-१९०० की अवधि इस्तेमाल की गयी है।

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