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Showing posts from 2022

जलवायु परिवर्तन - IPCC की छटवी रिपोर्ट (A.4)

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" यदि धरती के वायुमंडल में CO 2 की मात्रा दुगुनी हो जाए तो तापमान कितने बढ़ जाएँगे? " Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) -- यानि कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अंतर-सरकारी पैनल -- जलवायु विज्ञान की दुनिया की नवीनतम खोजों को एक सरल स्वरूप में नीतिकारों और आम जनता के सामने प्रस्तुत करता है। IPCC के तीन विभाजन हैं, जिन्हें कार्य दल १, २ या ३ के नाम से जाना जाता है। इस लेख में हम कार्य दल १ की छटवी रिपोर्ट के एक अंश पर चर्चा करेंगे, और उपरोक्त सवाल का जवाब समझने की कोशिश करेंगे। Source: Headline Statements, Working Group 1, Assessment Report 6 (2021)   CO 2 जैसी ऊष्मा संचारी गैसों के कारण धरती के वायुमंडल में गर्मी बढ़ती जा रही है। पर कितने CO 2 उत्सर्जन से तापमान कितना बढ़ेगा? इस सवाल का जवाब equilibrium climate sensitivity (ECS) यानि कि "संतुलित जलवायु संवेदनशीलता" नाम के एक माप से मिलता है। छटवी रिपोर्ट के अनुसार ECS की मात्रा तीन डिग्री है। यानि कि वायुमंडल में CO 2 जब पहले से दुगुनी हो जाएगी, तो इससे तापमान ३ डिग्री बढ़ जाएगा। इस तरह की मात्...

जलवायु परिवर्तन - IPCC की छटवी रिपोर्ट (A.3)

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पिछले साल IPCC - यानि कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अंतर-सरकारी पैनल - की छटवी रिपोर्ट प्रकाशित हुई। IPCC का पूरा नाम Intergovernmental Panel for Climate Change है। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित जो भी शोधकार्य हुआ हो, यह पैनल उसे एक सरल रूप में संकलित करता है ताकि आम आदमी एवं नीतिकार - दोनों ही नयी नयी जानकारियों को जान सकें और समझ सकें। दर-असल यह पैनल के तीन हिस्से हैं जिन्हें Working Group (कार्य दल) १, २ या ३ के नाम से जाना जाता है। ये तीनों कार्य दल जलवायु परिवर्तन के तीन अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन करते हैं। इस लेख में पहले कार्य दल की रिपोर्ट के एक अंश पर चर्चा है। Source: Headline Statements, WG1, AR6 (2021) अंश A.3 के अनुसार: " मानवजनित जलवायु परिवर्तन पहले से ही दुनिया भर के हर क्षेत्र में मौसम और जलवायु की कई चरम सीमाओं को प्रभावित कर रहा है। उदाहरण के लिए - ऊष्म लहर, भारी वर्षा, सूखा और उष्णकटिबंधीय चक्रवात - इन जैसी तीव्र मौसम घटनाओं में आए परिवर्तन के सबूत IPCC की पिछली रिपोर्ट (यानि कि पाँचवी रिपोर्ट) के बाद से और साफ़ हैं। इन तीव्र मौसम घटनाओं का मानवीय...

Climate crisis: intra-national inequalities are also unjust

" But the West's carbon footprint is much higher.. " If you've ever engaged in a conversation about the climate crisis, chances are, this came up. Along with "But we need to develop" (about that in some other post), I find the allusion to the West's carbon emissions the most common red herring that hinders a constructive domestic climate conversation. These phrases are often thrown at me in an attempt to explain why we don't need, or can't afford, more climate action in India. In my (inadequate) personal experience, this phrase is most conveniently thrown by those who seem to be less vulnerable to the climate crisis than the average Indian, but who also emit more than the average Indian. The irony is palpable. Historical climate responsibility and per capita carbon emissions are incontrovertible metrics. By both accounts, India has contributed very little to causing the climate crisis. Add to that the fact that India has the highest social cos...