जलवायु परिवर्तन - IPCC की छटवी रिपोर्ट (A.3)

पिछले साल IPCC - यानि कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अंतर-सरकारी पैनल - की छटवी रिपोर्ट प्रकाशित हुई। IPCC का पूरा नाम Intergovernmental Panel for Climate Change है। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित जो भी शोधकार्य हुआ हो, यह पैनल उसे एक सरल रूप में संकलित करता है ताकि आम आदमी एवं नीतिकार - दोनों ही नयी नयी जानकारियों को जान सकें और समझ सकें। दर-असल यह पैनल के तीन हिस्से हैं जिन्हें Working Group (कार्य दल) १, २ या ३ के नाम से जाना जाता है। ये तीनों कार्य दल जलवायु परिवर्तन के तीन अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन करते हैं।

इस लेख में पहले कार्य दल की रिपोर्ट के एक अंश पर चर्चा है।

Source: Headline Statements, WG1, AR6 (2021)


अंश A.3 के अनुसार: "मानवजनित जलवायु परिवर्तन पहले से ही दुनिया भर के हर क्षेत्र में मौसम और जलवायु की कई चरम सीमाओं को प्रभावित कर रहा है। उदाहरण के लिए - ऊष्म लहर, भारी वर्षा, सूखा और उष्णकटिबंधीय चक्रवात - इन जैसी तीव्र मौसम घटनाओं में आए परिवर्तन के सबूत IPCC की पिछली रिपोर्ट (यानि कि पाँचवी रिपोर्ट) के बाद से और साफ़ हैं। इन तीव्र मौसम घटनाओं का मानवीय आरोपण भी अब और साफ़ है।"

आइए, इस भारी भरकम कथन को और गहरायी में समझते हैं।

गौर करने की पहली बात ये है कि यहाँ मौसम या जलवायु की बात नहीं हो रही है, बल्कि मौसम या जलवायु की चरम घटनाओं की बात हो रही है। इन घटनाओं से हमारे समाज को छोटी-सी अवधि में ही काफ़ी नुक़सान हो जाता है। उदाहरण हेतु, गर्मी के मौसम से तो हम सब वाक़िफ़ हैं मगर जब एक ऊष्म लहर आती है तो और भी ज़्यादा सावधानी बरतनी होती है। गर्मी से पहले से ही व्यथित प्रणालियाँ ऊष्म लहरों से और भी ज़्यादा क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।

इस नयी रिपोर्ट में कई ज़रूरी तथ्यों का उल्लेख है:

  1. १९५० के दशक से दुनिया भर के भू-स्थलों पर ऊष्म लहरों की आवृत्ति और तीव्रपन दोनों ही बढ़ गए हैं। दूसरी ओर, शीत लहरों की आवृत्ति और तीव्रपन दोनों ही घट गए हैं।
  2. १९८० के दशक से समुद्री ऊष्म लहरों की आवृत्ति लगभग दोगुनी हो गयी है। (जी हाँ, जैसे भू-स्थलों में ऊष्म लहरें आती हैं, वैसे ही समुद्रों में भी आती है। वैसे तो ये ज़ाहिर-सी बात है, क्योंकि धरती का वायुमंडल समुद्रों से भी जुड़ा हुआ है और इन दोनो प्रणालियों के बीच गर्मी का हस्तांतरण होता रहता है। फिर भी कभी-कभी हम ये बात भूल जाते हैं, ख़ास कर यदि हमारा समुद्रों से ज़्यादा लेना-देना ना हो।)
  3. भारी वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रपन में भी बढ़ोतरी हुई है। जलवायु परिवर्तन के इस परिणाम को समझना ज़्यादा मुश्किल है। ख़ास कर तापमान-सम्बंधित परिणामों के मुक़ाबले, ये संकेत उतना साफ़ नहीं है। उलझाने वाली बात ये है कि वर्षा पर वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव कुछ विरोधात्मक से होते हैं। जैसे जैसे दुनिया में वायु प्रदूषण को कम करने के कदम उठाए जा रहे हैं, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और तीव्र होता जा रहा है।
  4. ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों में ३-५ श्रेणी (यानि कि और तीव्र) चक्रवातों का अनुपात पिछले चार दशकों में बढ़ गया है। हालाँकि अभी तक कुल चक्रवातों की आवृत्ति में क्या कोई बढ़ोतरी हुई है, यह कह पाना मुश्किल है।
  5. इसके अलावा इस रिपोर्ट में एक और बहुत गम्भीर तरह की घटनाओं का उल्लेख है - compound events यानि कि संयुक्त घटनाएँ। उदाहरण के लिए ऊष्म लहर और सूखे का साथ में आना। इसे समझने के लिए जलवायु परिवर्तन से असंबंधित या फिर थोड़े-बहुत सम्बंधित उदाहरण भी ले सकते हैं। जब करोना की वैश्विक महामारी के दौरान ही तीव्र चक्रवात आयें तो मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। उसी तरह, जलवायु परिवर्तन से ही पूर्णतः सम्बंधित दो घटनाएँ साथ में आकर एक compound event को जन्म देती हैं। इनकी आवृत्ति में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है।
 

अब हो सकता है आप सोच रहे हों कि आज कल जो भी तीव्र मौसम घटना होती है उसे मानवजनित या फिर जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित करार दे दिया जाता है, मगर ऐसा नहीं है। जलवायु विज्ञान की एक विशिष्ट शाखा - attribution science - यानि कि आरोपण विज्ञान के विश्लेषण के बाद ही वैज्ञानिक ऐसे निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। ऊष्म लहरों के आरोपण को लेकर काफ़ी स्पष्ट जवाब उपलब्ध हैं। वर्षा सम्बंधित परिवर्तन में भी मानव प्रभाव का हाथ है, पर इसमें कम स्पष्टता है। इसे मात्रात्मक शब्दों में समझते हैं। ऊष्म लहरें बढ़ रही हैं - इस बात की सम्भावना ९९-१००% है। इनमें से कुछ लहरों के बारे में कहा जाता है कि मानव प्रभाव के अभाव में ऐसी लहर के आने की सम्भावना ०-५% ही थी। समुद्री ऊष्म लहरों की बढ़ोतरी वैसे तो हम १९८० के दशक से देख रहे हैं, परंतु अभी हम सिर्फ़ यही कह सकते हैं कि सन २००६ से इस बढ़ोतरी में मानवी हाथ है (९०-१००% सम्भावना)। पिछले चार दशकों में चक्रवातों के और तीव्र हो जाने की सम्भावना अभी ६६-१००% है। वैसे ही, संयुक्त घटनाओं की बढ़ोतरी की सम्भावना भी अभी ६६-१००% पर है।

 

इन सारी बातों को IPCC ने चित्रात्मक तरीक़े से भी प्रस्तुत किया है। उदाहरण हेतु इस चित्र को देखें, जो कि ऊष्म चरमों के बारे में बताता है:

भारत SAS यानि कि South Asia क्षेत्र में है। वहाँ ऊष्म चरमों में लाल रंग से बढ़ोतरी दर्शायी गयी है। ध्यान दें कि हर क्षेत्र में कुछ बिंदु भी हैं, जो इस बढ़ोतरी में मानवी हाथ की सम्भावना बताते हैं। SAS में तीन बिंदु हैं यानि कि सम्भावना ऊँची है। NZ (New Zealand) में ये सम्भावना कम है।


अगला चित्र भी कुछ इसी तरह है पर इसमें वर्षा-सम्बंधित जानकारी है:
 

एक बार फिर SAS को देखें तो वर्षा सम्बंधित तीव्र घटनाओं की आवृत्ति में बढ़ोतरी हुई है, परंतु इस बार इस परिणाम में हमारा "confidence" पहले से कम है। कई ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ ये confidence ज़्यादा है, जैसे कि NEU (Northern Europe)। और कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ बढ़ोतरी या कमी के कोई साफ़ संकेत हैं ही नहीं, जैसे कि WNA (Western North America)।


आशा है कि ये सब पढ़कर आप दो बातों पर ध्यान देंगे -

(१) वैज्ञानिक मौसम सम्बंधित हर घटना को जलवायु परिवर्तन का करार नहीं दे देते। इस निष्कर्ष पर पहचने के लिए गहरा विश्लेषण करना पड़ता है।

(२) हर विश्लेषण के परिणाम सम्भावना के आँकड़ों में दिए जाते हैं। इससे पाठक ये भी समझ सकते हैं कि किसी भी वैज्ञानिक तथ्य को "तथ्य" कहने के पहले कितनी जाँच की जाती है।

अंततः

मानव गतिविधियों के कारण दुनिया भर में गर्मी और तीव्र मौसम की घटनायें बढ़ती जा रही है। ये बहुत ज़रूरी है कि हम इन ख़तरों को नज़र-अन्दाज़ ना करें। हर देश, समाज या समुदाय को जलवायु परिवर्तन को रोकने की और उससे जूझने की तगड़ी कोशिश करनी होगी।

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भारत जैसे देश में तेज़ गर्मी से हम सब पहले से ही वाक़िफ़ हैं। हो सकता है इसलिए हम ऊष्म लहरों को कभी-कभी हल्के में ले लें। परंतु ऊष्म लहरें घातक भी हो सकती हैं! भारत में ऊष्म लहर तब घोषित की जाती है जब तापमान या तो सामान्य से ४-६ डिग्री ज़्यादा हो, या फिर तापमान ४५ डिग्री से भी ज़्यादा हो जाए। दोनों ही परिस्थितियों में ऊष्म-थकावट और ऊष्म-घात का ख़तरा रहता है। यह ख़तरा बच्चों, बड़े-बूढ़ों, गर्भवती महिलाओं और बाहरी कर्मचारियों के लिए और ज़्यादा है। मेरा आग्रह है कि पाठक इस पृष्ठ पर सबसे नीचे दी गयी शैक्षिक सामग्री पर एक नज़र ज़रूर घुमा लें। 

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