क्या है जलवायु परिवर्तन - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) के नज़रिए से

अक्सर जब मैं जलवायु परिवर्तन की बात करती हूँ तो लोग मुझसे पूछते हैं -- हम इस समस्या के बारे में क्या कर सकते हैं? मैं सब से पहले उन सब लोगों का धन्यवाद देना चाहती हूँ। निस्संदेह ही सबका योगदान ज़रूरी है। परंतु मैं सबको यही सुझाव देती हूँ कि निस्वार्थ भावना से कुछ भी करने के पहले इस समस्या के बारे में कम से कम १-२ महीने पढ़े, सोचें, चर्चा करें। वैसे तो इस समस्या के इतने पहलू हैं कि १-२ महीने में सब कुछ समझना असम्भव है, पर एक अच्छी शुरुआत की जा सकती है। बिना समझे कूच करने से ग़लतियाँ हो सकती हैं।

तो शुरुआत कहाँ से की जाए? कुछ सवाल सबके मन में आते होंगे:
  1. जलवायु परिवर्तन क्या है?
  2. जलवायु परिवर्तन "समस्या" क्यों है?
  3. ये परिवर्तन हो क्यों रहा है?
  4. इसके क्या समाधान हैं?
मेरे विचार में कोई भी राय बनाने के पहले ये चार पहलू ज़रूर समझ लेने चाहिए। ये हर संवाद की बुनियाद हैं। जब आप इन चार पहलुओं को समझ लेंगे तब आगे का रास्ता अपने आप साफ़ हो जाएगा। इस लेख में पहले सवाल पर चर्चा करते हैं, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) का उदाहरण लेकर।

आख़िर क्या है "जलवायु परिवर्तन"?

"आज का मौसम कैसा है?" इसके जवाब में हम कई बातें कह सकते हैं -- जैसे कि आज गर्मी पड़ रही है या ठंड (यानी की तापमान कैसा है), क्या बादल छाए हुए हैं, क्या बारिश हो रही है, क्या हवा चल रही है, आदि। मौसम एक दिन से दूसरे दिन, या फिर कभी-कभी एक घंटे से दूसरे घंटे भी बदल सकता है। पर जलवायु आसानी से नहीं बदलती । "वहाँ की जलवायु कैसी है?" इसका जवाब उस जगह के मौसम के तीस वर्षीय औसत पर आधारित होता है। यदि एक साल बहुत ज़्यादा सर्दी पड़ भी जाए तो वहाँ की जलवायु एकदम से नहीं बदल जाती।

यदि 1950 - 1979 का अंतराल देखें तो होशंगाबाद शहर का औसत तापमान लगभग 28.3 डिग्री था। इसकी तुलना रूस के मॉस्को शहर से करें: वहाँ का औसत तापमान लगभग 5.8 डिग्री है। ऐसा नहीं है कि रूस में गर्मी नहीं पड़ती या फिर होशंगाबाद में सर्दी नहीं पड़ती। रूस में गर्मी के मौसम में औसत तापमान 20 डिग्री तक पहुँच जाता है, और होशंगाबाद में सर्दी में कुछ ऐसा ही हाल रहता है। पर ध्यान देने की बात ये है कि दोनो जगहों का मौसम मोटे मोटे तौर पर काफ़ी अलग है -- मतलब कि दोनो जगह की जलवायु काफ़ी अलग है। निष्कर्ष में : "मौसम" और "जलवायु" शब्दों में फ़रक है। मौसम काफ़ी आसानी से बदलता है पर जलवायु नहीं।

तो फिर ये "जलवायु परिवर्तन" का क्या मतलब है? 

This graph is made using monthly near-surface temperature (t2m) values for the coordinates 22.75 N 77.6 E from the ERA-20C public dataset provided by ECMWF.

1900 - 2010 के अंतराल के तापमान देखें तो साफ़ दिखता है की धीरे धीरे होशंगाबाद में गर्मी बढ़ रही है। जहां 1900 में वार्षिक औसत लगभग 28 डिग्री था, वहीं 2010 में ये बढ़ कर लगभग 29 डिग्री हो गया। हो सकता है आपको लगे कि 1 डिग्री तो कोई बड़ी बात नहीं है, पर ऐसा "मौसम" के लिए कहना ठीक हो सकता है, पर "जलवायु" के लिए नहीं। चिंताजनक बात ये भी है कि ये गर्मी आने वाले कई दशकों तक बढ़ती रहेगी। भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2100 तक औसत तापमान 4.4 डिग्री और बढ़ने के आसार हैं। संयुक्त राष्ट्र संगठन की पिछली रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में औसत तापमान 2 - 4.5 डिग्री तक बढ़ने के आसार हैं। अतः स्थिति काफ़ी गम्भीर है।

ज़ाहिर सी बात है की इस से समाज के हर इंसान पर प्रभाव पड़ता है। सर्दी का मौसम छोटा हो रहा है, गर्मियाँ और लम्बी और और भीषण हो रही हैं। वैसे तो सभी को भीषण गर्मी से तकलीफ़ होती है पर बच्चे और बूढ़ों पर इसका असर और भी ज़्यादा होता है। दूसरी ध्यान देने की बात है कि किसानों को इस बढ़ती गर्मी के कारण नुक़सान हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन से सिर्फ़ तापमान नहीं बढ़ रहा है, बल्कि साथ साथ मौसम भी अप्रत्याशित होता जा रहा है। इसका मतलब कि बारिश होने के कितने आसार हैं, इसकी पूर्व-सूचना देना और कठिन होता जा रहा है। किसान के लिए बीज बोने से लेकर, सिंचाई और फसल काटने जैसे सारे काम मौसम, ख़ास कर के बारिश, पर निर्भर करते हैं। जलवायु परिवर्तन से कृषि को हानि अपेक्षित है।

होशंगाबाद शहर के हर निवासी को ख़ुद को इस आपदा से बचाने के लिए तय्यारी करनी होगी। कुछ ही सालों में ऐसा हाल हो सकता है कि बिना एसी के गर्मी का समय काटना बेहद मुश्किल हो जाए। ग़रीबों पर जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव सबसे तीव्र होगा। शासन को ये निश्चित करना चाहिए कि ये जानकारी शहर के सभी निवासियों तक पहुँचे ताकि वो इस संकट के बारे में जागरूक हो सकें।

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