जलवायु परिवर्तन - IPCC की छटवी रिपोर्ट (A.4)


" यदि धरती के वायुमंडल में CO2 की मात्रा दुगुनी हो जाए तो तापमान कितने बढ़ जाएँगे? "


Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) -- यानि कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अंतर-सरकारी पैनल -- जलवायु विज्ञान की दुनिया की नवीनतम खोजों को एक सरल स्वरूप में नीतिकारों और आम जनता के सामने प्रस्तुत करता है। IPCC के तीन विभाजन हैं, जिन्हें कार्य दल १, २ या ३ के नाम से जाना जाता है। इस लेख में हम कार्य दल १ की छटवी रिपोर्ट के एक अंश पर चर्चा करेंगे, और उपरोक्त सवाल का जवाब समझने की कोशिश करेंगे।

Source: Headline Statements, Working Group 1, Assessment Report 6 (2021)

 

CO2 जैसी ऊष्मा संचारी गैसों के कारण धरती के वायुमंडल में गर्मी बढ़ती जा रही है। पर कितने CO2 उत्सर्जन से तापमान कितना बढ़ेगा? इस सवाल का जवाब equilibrium climate sensitivity (ECS) यानि कि "संतुलित जलवायु संवेदनशीलता" नाम के एक माप से मिलता है। छटवी रिपोर्ट के अनुसार ECS की मात्रा तीन डिग्री है। यानि कि वायुमंडल में CO2 जब पहले से दुगुनी हो जाएगी, तो इससे तापमान ३ डिग्री बढ़ जाएगा। इस तरह की मात्राओं के साथ वैज्ञानिक एक " अनिश्चितता " (uncertainty) भी व्यक्त करते हैं। ECS की मात्रा सम्भवतः २.५ डिग्री से ४ डिग्री के बीच है, और सबसे ज़्यादा सम्भावना है कि ये मात्रा ३ डिग्री है।

तो इससे हमें एक ज़रूरी जानकारी मिलती है -- कि यदि CO2 की मात्रा दुगुनी हो गयी, तो हमें ३ डिग्री की गर्मी और सहने के लिए तय्यार रहना चाहिए। ये सारी बातें सन १७५० को आधार मानकर कही जाती हैं। इसका मतलब है की जब CO2 की मात्रा सन १७५० की मात्रा (२८० ppm) से दुगुनी हो जाएगी, तब तापमान सन १७५० के तापमान से ३ डिग्री बढ़ चुका होगा। गौर करें कि सन १७५० के २८० ppm के आँकड़े से हम आज ४२० ppm तक पहुँच चुके है। दुगुनी मात्रा -- यानि कि ५६० ppm -- के स्तर पर इस सदी के अंत तक पहुँच सकते हैं।

AR५ यानि कि पाँचवीं रिपोर्ट में भी इस माप की चर्चा हुई थी। उस रिपोर्ट में इस माप की अनिश्चितता १.५ डिग्री से ४.५ डिग्री तक बतायी गयी थी। दरअसल १९७९ में इस माप का पहला अनुमान दिया गया था, और उसके बाद इस अनिश्चितता को कम करने के लिए वैज्ञानिकों को लगभग ४० साल लग गए। अनिश्चितता और संकीर्ण करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस बात को कुछ ऐसे समझ सकते हैं -- यदि आपको कोई ये बताए कि भविष्य में आपको एक बड़ा बिल भरना है तो ज़ाहिर सी बात है कि आप जानना चाहेंगे की कितना बड़ा? उसके हिसाब से आप अपना वित्तीय नियोजन करेंगे। यदि बिल की मात्रा साफ़-साफ़ ना बताकर एक अनिश्चितता बतायी जाए तो आप चाहेंगे की ये जितनी छोटी (संकीर्ण) हो सके, उतना अच्छा। ECS भी कुछ ऐसे ही बिल की तरह है, जो पूरी दुनिया को भरना है। १.५ डिग्री की निम्न सीमा अब बढ़कर २.५ डिग्री हो चुकी है। इसका मतलब है कि हमें और बड़े बिल के लिए तय्यार रहना चाहिए। परंतु दूसरी ओर, ४.५ डिग्री की ऊपरी सीमा भी घटकर ४ डिग्री हो चुकी है। इससे कुछ आशा बाँधी जा सकती है।

अंततः हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वैश्विक CO2 उत्सर्जन कितना घटाया जाएगा। जो लोग ३ डिग्री की तापमान बढ़ोतरी से उभरते ख़तरों को समझते हैं वो जल्द-से-जल्द वैश्विक उत्सर्जन घटाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। ये एक बहुत ही बड़ी चुनौती है जिसमें हर इंसान के योगदान की आवश्यकता है।

 

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Comments

  1. However, the assumptions behind the simulations should also be made clear as to what levels of other gases are being considered, range of values of other parameters under consideration and the level of confidence in them. Its like you'd rather take more confidence in a core sample rather than information received from, say indirect investigations. Further, the Earth may also be normalizing its natural cycles to restoration.

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